मोदी की हैट्रिक, लेकिन सत्ता की चाबी नीतीश-नायडू के पास: जातिगत जनगणना, मुस्लिम आरक्षण का दबाव बनाएंगे; धरा… – Dainik Bhaskar

Spread the love

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार NDA की सरकार बन रही है, लेकिन इस बार सत्ता की चाबी NDA के दो बड़े पार्टनर नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के हाथों में रहेगी। ऐसे में BJP को अपने कोर एजेंडे को आगे ले जाने में धक्का लग सकता है।
BJP के खाते में 240 सीटें मिली हैं। TDP को 16 और जदयू को 12 सीटों पर जीत मिली है। बहुमत के लिए 272 सीटों की जरूरत होगी। इस बेस पर इन पार्टियों के पावर का डिस्ट्रीब्यूशन करें, तो 89% पावर BJP के पास और 5.5-5.5 प्रतिशत जदयू और TDP के पास है।
देखने में 5.5% का पावर मीटर भले छोटा हो, लेकिन सरकार गिराने के लिए काफी है। हमने बहुमत के आंकड़े यानी 272 को 100% मानते हुए पावर मीटर निकाला है।
भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे बीजेपी के एजेंडे के किन बिंदुओं पर अड़ंगा लगा सकते हैं नीतीश-नायडू और किन मुद्दों पर सरकार पर दबाव बना सकते हैं…
आरक्षण और अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर नीतीश का बीजेपी से अलग स्टैंड
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, नीतीश कुमार ने रैलियों में कहा कि उन्होंने अपने शासनकाल में सांप्रदायिक सद्भाव बरकरार रखा। अल्पसंख्यकों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाईं। भाजपा के साथ होने के बावजूद नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यक समुदाय को यह संदेश दिया है कि वह भाजपा के साथ गठबंधन के बावजूद उनके हितों की रक्षा करना जारी रखेंगे।
भाजपा में शामिल होने से पहले नीतीश ने आरक्षण पर बहस छेड़ दी थी और बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण भी करवाया था। JDU लगातार यह कहती रही है कि सभी वर्गों को सही जगह और सही संख्या में आरक्षण मिल रहा है या नहीं, इसके लिए जातियों की सही जनसंख्या का पता लगना जरूरी है, इसके लिए जातिगत जनगणना करवानी चाहिए।
इधर RJD अभी तक कहती आई है कि ‘सामाजिक न्याय के लिए नीतीश कुमार गठबंधन बदल सकते हैं।’
10 साल में 4 बार पाला बदल चुके हैं नीतीश
नीतीश का पाला बदलने का इतिहास रहा है। पिछले 10 सालों में नीतीश कुमार 4 बार पाला बदल चुके हैं। दो बार वे NDA छोड़कर महागठबंधन के साथ गए और दो बार महागठबंधन छोड़कर फिर से NDA में शामिल हुए हैं। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार ने NDA का साथ छोड़ा तो बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी।
चुनाव से पहले NDA में आए चंद्रबाबू नायडू क्या पाला बदलेंगे
चंद्रबाबू की पार्टी TDP पहले भी BJP की अगुआई वाले NDA का हिस्सा रही थी। 2014 में TDP और BJP ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था, लेकिन 2018 में TDP ने BJP से किनारा कर लिया।
इसके बाद PM मोदी और नायडू में विरोध इस हद तक बढ़ गया कि आंध्र प्रदेश जाने पर प्रोटोकॉल के तहत TDP का कोई मंत्री तक प्रधानमंत्री की अगवानी में नहीं आया। व्यक्तिगत हमलों का स्तर ये था कि मोदी ने नायडू को ‘ससुर एनटी रामा राव का गद्दार’ कहा और नायडू, मोदी पर हमला करते-करते उनकी पत्नी जसोदाबेन का जिक्र ले आए।
6 साल बाद 9 मार्च 2024 को सारे गिले-शिकवे भुलाकर TDP फिर NDA का हिस्सा बनी। आंध्र प्रदेश में BJP संगठनात्मक रूप से बहुत कमजोर है। प्रदेश में BJP का कोई बड़ा नेता भी नहीं है। इसके बावजूद BJP के साथ नायडू के जाने के पीछे व्यक्तिगत वजह मानी जा रही है।
बता दें कि पिछले साल सितंबर में कथित आंध्र प्रदेश कौशल विकास निगम घोटाले में चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी हुई थी।
वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर नागेश्वर के मुताबिक, ‘आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग पूरी न होने पर चंद्रबाबू ने NDA गठबंधन से किनारा किया था। वो मांग अभी भी अधूरी है, लेकिन घोटाले में गिरफ्तारी के बाद से चंद्रबाबू को केंद्रीय एजेंसियों का भी डर था। उन्हें लगा कि BJP के साथ जाने से वो कानूनी कार्रवाई से बचे रहेंगे।’
TDP और BJP के बीच असहमति मुस्लिम आरक्षण को लेकर भी रही है। BJP ने चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू बहुसंख्यकों को रिझाने के लिए मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठाया। वहीं चंद्रबाबू नायडू ने प्रचार के दौरान कहा कि वह शुरू से ही मुस्लिमों के लिए 4% आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं।
29 अप्रैल 2024 को नायडू ने एक जनसभा में यह भी कहा कि सरकार आने पर हज यात्रियों को एक लाख रुपए दिए जाएंगे।
आंध्र प्रदेश BJP के अंदर भी एक खेमा TDP के साथ गठबंधन से नाराज था। द हिंदू की एक खबर के मुताबिक खुले मंच पर पार्टी के नेताओं ने कहा कि TDP से समझौता BJP की वैचारिक ताकत के खिलाफ है।
आज की स्थिति में बीजेपी के लिए TDP का साथ जरूरी है, खबर आ रही है कि मोदी ने नायडू से फोन पर बात की है। देखना है कि सरकार बनाने के लिए समर्थन के बदले TDP कौन सी शर्तें रखती है।
अब जानते हैं कि बीजेपी के किन एजेंडों पर अड़ंगा और किन मुद्दों पर दबाव बना सकते हैं नीतीश-नायडू…
1. वन नेशन, वन इलेक्शन: नीतीश लगा सकते हैं अड़ंगा
देश में वन नेशन, वन इलेक्शन लागू करना बीजेपी का बड़ा एजेंडा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को इस संबंध में बनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। कहा जा रहा है कि 47 राजनीतिक दलों में से 32 दल तैयार हैं। चूंकि NDA गठबंधन में इस बार जदयू और TDP की भूमिका अहम है। ऐसे में वे BJP के इस एजेंडे पर रोड़ा बन सकते हैं।
2. यूनिफॉर्म सिविल कोडः नीतीश और नायडू राह मुश्किल बनाएंगे
देशभर में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना हमेशा से बीजेपी के कोर एजेंडे में शामिल रहा है। उत्तराखंड जैसे राज्यों में बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू भी कर चुकी है।
माना जा रहा था कि इस बार सत्ता में लौटने के बाद बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के एजेंडे को आगे बढ़ाएगी, लेकिन अब सहयोगी पार्टियां बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इस एजेंडे पर BJP को बैकस्टेप लेने के लिए मजबूर कर सकते हैं।
3. देशभर में जातिगत जनगणना कराने के लिए दबाव
नीतीश कुमार बिहार में जातिगत जनगणना करा चुके हैं। वे देशभर में जातिगत जनगणना कराने की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं। ऐसे में जाहिर है कि इस बार वे मोदी सरकार पर जातिगत जनगणना के लिए दबाव बनाएंगे। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि विपक्षी पार्टियां चाहें कांग्रेस हो या राजद, दोनों लगातार जातिगत जनगणना की मांग करती आ रही हैं। उनका दबाव भी नीतीश कुमार पर होगा।
जेडीयू के 16 उम्मीदवारों में से छह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और पांच अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) से हैं, जो बिहार की कुल आबादी का 63% हिस्सा हैं; 3 उम्मीदवार उच्च जातियों से हैं, जो आबादी का केवल 15% हिस्सा हैं। इसके अलावा एक-एक उम्मीदवार महादलित और मुस्लिम समुदाय से हैं। उम्मीदवारों में से दो महिलाएं भी हैं।
पिछड़ी जातियों के अलावा दलित और खास तौर पर मुस्लिम वोटर्स में भी जेडीयू का प्रभाव रहता है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार ने रैलियों में कहा कि उन्होंने अपने शासनकाल में सांप्रदायिक सद्भाव बरकरार रखा।
4. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग
नीतीश कुमार लंबे समय से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करते आ रहे हैं। पिछले साल नवंबर में नीतीश कुमार ने सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिए बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की थी।
उन्होंने इसको लेकर बिहार में अभियान चलाने की बात भी कही थी। अब चूंकि इस सरकार में नीतीश के समर्थन के बिना बीजेपी को सरकार चलाना मुश्किल होगा, तो जाहिर है कि वे मोदी सरकार पर दबाव बनाएंगे।
5. मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति
मई 2024 में चंद्रबाबू नायडू ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘हम शुरू से ही मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं और यह जारी रहेगा।’
इसके अलावा नायडू ने घोषणा कि थी कि आंध्र प्रदेश में TDP -जनसेना और बीजेपी के गठबंधन वाली सरकार बनते ही मक्का जाने वाले मुस्लिम तीर्थयात्रियों को 1 लाख रुपए की वित्तीय सहायता दी जाएगी। नीतीश कुमार का भी मुस्लिमों को लेकर सॉफ्ट कॉर्नर रहा है। बिहार में भी लंबे समय से मुस्लिमों को आरक्षण मिल रहा है।
6. कैबिनेट में पावरफुल मिनिस्ट्री की मांग
नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के साथ ही चिराग पासवान और बाकी सहयोगी भी मोदी कैबिनेट में पावरफुल मिनिस्ट्री के लिए दबाव बनाएंगे।
2019 में NDA के साथ सरकार बनाने के बाद भी शुरुआत में नीतीश कुमार की पार्टी ने मोदी मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया था। तब मोदी कैबिनेट में जदयू से एक मंत्री को जगह मिल रही थी, जिसके बाद नीतीश ने कहा था कि हम सिर्फ सिम्बॉलिक रूप से सत्ता में शामिल नहीं होंगे। हालांकि बाद में नीतीश की पार्टी से आरसीपी सिंह मंत्री बने।
वहीं चिराग पासवान की भी नजर पावरफुल मिनिस्ट्री पर है। अभी तक वे मोदी कैबिनेट में मंत्री नहीं बन पाए हैं। राम विलास पासवान के निधन के बाद भी उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया था। यहां तक कि 2020 में बिहार चुनाव के वक्त नीतीश के दबाव में उन्हें गठबंधन से भी बाहर रखा गया था।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.

source

Previous post Sitapur Lok Sabha Chunav 2024 Result Live: सीतापुर लोकसभा सीट का ताजा हाल, कांग्रेस के राकेश राठौर 76223 से आग – Times Now Navbharat
Next post Exit Poll 2024: रिजल्ट से पहले दूर कर लें कन्फ्यूजन! क्या हैं एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल, अंतर है भी या नहीं… – News18 हिंदी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *