लोकसभा चुनाव का एक और पड़ाव पार हो गया है, दूसरे चरण की वोटिंग भी संपन्न हुई है। लेकिन पहले चरण की तरह एक बार फिर जनता कुछ उदासीन दिखाई दी, वोटिंग प्रतिशत उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ा। कई राज्यों में पिछले लोकसभा चुनाव के रिकॉर्ड भी टूट गए है, यूपी से लेकर बिहार तक, महाराष्ट्र से लेकर राजस्थान तक, ज्यादातर इलाकों में 2019 की तुलना में कम वोट पड़े हैं।
इस समय सभी के मन में सवाल है कि आखिर दूसरे चरण के बाद आगे कौन चल रहा है- बीजेपी या इंडिया वाले? अब आंचार सहिता लागू है, ऐसे में कोई सर्वे या ओपिनियन पोल आपके सामने नहीं रख सकते, लेकिन पिछले चुनावों के वोटिंग पैटर्न को डीकोड कर भी काफी कुछ समझ सकते हैं, उससे अंदाजा लग सकता है कि कम वोटिंग का फायदा और नुकसान किसे ज्यादा रहने वाला है। सबसे पहले ये जान लेते हैं कि 2019 की तुलना में कहां कितनी वोटिंग हुई है-
अब ऊपर दी गई टेबल साफ बताती है कि सिर्फ कर्नाटक में ही पिछली बार की तुलना में ज्यादा वोटिंग हुई है, बाकी सभी राज्यों में गिरावट देखने को मिली है। कहीं ये गिरावट 10 फीसदी से भी ज्यादा की है। अब जानकार मानते हैं कि तीन कारणों की वजह से मतदान कम होता है, या तो हीटवेव की स्थिति ने लोगों को बूथ से दूर किया, या फिर इस बार चुनाव को लेकर उत्साह नहीं है। कई मौकों पर सरकार के प्रति उदासीनता भी कम वोटिंग का कारण बन जाती है।
वैसे यहां पर समझने वाली बात ये है कि यूपी की कई सीटों पर कम मतदान जरूर हुआ है, लेकिन ये कह देना कि ये केंद्र सरकार के खिलाफ पड़ा है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इस समय कई ऐसी सीटें मौजूद हैं जहां पर प्रत्याशी ही विपक्ष द्वारा काफी कमजोर उतार दिए गए हैं। उस वजह से वहां बीजेपी की जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। ऐसे में अगर वहां पर कम वोटिंग भी हुई है तो बस जीत का मार्जिन छोटा हो सकता है, उससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला।
कम वोटिंग का सबसे ज्यादा असर उन सीटों पर पड़ता है जहां पर मुकाबला आमने-सामने का रहता हो। दूसरे चरण में भी कुछ ऐसी सीटें हैं जहां पर दोनों बीजेपी और इंडिया गठबंधन के मजबूत उम्मीदवार मैदान में खड़े हैं। ऐसी सीटों पर कम मतदान की वजह से हार-जीत का अंतर काफी कम हो जाता है। यही वो समीकरण है जो दोनों बीजेपी और इंडिया गठबंधन को चिंता में डाल रहा है। महाराष्ट्र की कम वोटिंग भी कन्फ्यूज करने वाली साबित हुई है। अगर किसी एक के पक्ष में सहानुभति होती, अगर उद्धव या शरद पवार को अपार समर्थन मिलता, उस स्थिति में भी वोट प्रतिशत बढ़ना लाजिमी था। लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है और दूसरी सबसे कम वोटिंग महाराष्ट्र में ही हुई है।
अब कई बार जब सरकार नहीं बदलनी होती, तब भी कम मतदान होता है क्योंकि जनता आश्वस्त होती है कि उनका नेता जीत ही जाएगा। अब देश में इस समय जैसा माहौल है, ज्यादातर लोग बीजेपी से ज्यादा नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में कम वोटिंग को भी बीजेपी अपने पक्ष में बताने की कोशिश कर रही है। एक आंकड़ा बताता है कि 17 लोकसभा चुनावों में पांच बार मतदान कम हुआ है, उस स्थिति में 4 बार सरकारें बदल चुकी हैं, वहीं 7 बार जब मतदान बढ़ा है, तब सरकार बदली हैं। ऐसे में ये वोटिंग पैटर्न तो दोनों इंडिया और एनडीए को थोड़ी उम्मीद और थोड़ा तनाव देने का काम कर रहा है।
भारत के तीन नए आपराधिक कानून 1 जुलाई से लागू होंगे। सरकार ने कार्यान्वयन की तैयारी के लिए बैठकें की हैं और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए हैं। कानूनों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा और स्कूलों में मॉड्यूल बनाए जाएंगे। प्रचार अभियान, तकनीकी उन्नयन और पुलिस क्षमता निर्माण भी किया गया है। कानूनी मामले विभाग ने सम्मेलन आयोजित किए हैं और iGOT प्लेटफॉर्म पर मार्गदर्शन प्रदान किया है।