बसपा 2014 में बच गई थी, पर अब खो सकती है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा, क्या कहता है चुनाव आयोग का नियम? – Jansatta

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लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बहुजन समाज पार्टी (BSP) के लिए निराशाजनक रहे। पार्टी लोकसभा में एक भी सीट नहीं जीत पायी। लोकसभा में कोई निर्वाचित सांसद नहीं होने और इस आम चुनाव में वोट शेयर घटकर 2.04% होने के बाद बसपा राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा खो सकती है।
द इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के मुताबिक, आम चुनावों के बाद चुनाव आयोग द्वारा की जाने वाली पारंपरिक समीक्षा में देश में एक मात्र राष्ट्रीय स्तर की दलित पार्टी, बहुजन समाज पार्टी अपना राष्ट्रीय दर्जा खो सकती है। सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग 2024 के चुनावों की सांख्यिकीय रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद समीक्षा प्रक्रिया शुरू करेगा जो एक महीने के भीतर होने की उम्मीद है।
वर्तमान में छह राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता दी गई है – भाजपा, बसपा, कांग्रेस, आप, नेशनल पीपुल्स पार्टी और सीपीएम। बीएसपी को 1997 में राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दी गई थी।
चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के अनुसार, एक राष्ट्रीय पार्टी वह है जिसके पास पिछले आम चुनाव में चार या अधिक राज्यों में कुल वैध वोटों का कम से कम 6% और कम से कम चार सांसद हों।
इसके अलावा पार्टी के पास लोकसभा में कम से कम 2% सीटें हों, जो कम से कम तीन राज्यों में हो या वह कम से कम चार राज्यों में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी हो।
ईसीआई वेबसाइट पर उपलब्ध नतीजों के अनुसार, बसपा 18वीं लोकसभा में कोई भी सीट जीतने में विफल रही और कुल वोटों का केवल 2.04% प्राप्त कर पाई है। ऐसे में वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बरकरार रखने के पहले दो पैमानों में विफल रही है। 2024 के चुनावों के अंतिम परिणाम और आंकड़े अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं।
तीसरी कसौटी के लिए, बसपा को चार या अधिक राज्यों में मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी होने की शर्तों को पूरा करना होगा, जिसे वह अभी तक पूरा नहीं करती है। 2019 और अब के बीच हुए सभी राज्य विधानसभा चुनावों में, बसपा केवल उत्तर प्रदेश में राज्य पार्टी होने के मानदंडों को पूरा करती है, जहां उसने 2022 के राज्य चुनावों में 12.88% वोट जीते थे। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी बसपा ने राज्य पार्टी के मानदंडों को पूरा किया। उत्तर प्रदेश में पार्टी को 9.39% वोट मिले।
आदेश के अनुसार, एक राज्य पार्टी वह है जिसे राज्य में कुल वैध वोटों का कम से कम 6% और कम से कम दो विधायक मिले हों। इसके अलावा या तो पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में पड़े कुल वैध वोटों का कम से कम 6% और उस राज्य से कम से कम एक सांसद या विधानसभा की कुल सीटों का कम से कम 3% या तीन सीटें या लोकसभा में उस राज्य को आवंटित प्रत्येक 25 सीटों के लिए कम से कम एक सांसद या उस विशेष राज्य के विधानसभा चुनाव या पिछले लोकसभा चुनाव में कुल वैध वोटों का कम से कम 8% मिला हो।
यह पहली बार नहीं है कि बसपा की राष्ट्रीय स्थिति सवालों के घेरे में है। पिछले चार लोकसभा चुनावों में बसपा का राष्ट्रीय स्तर पर वोट शेयर काफी कम हो गया है। 2009 में पार्टी ने 6.17% वोट शेयर के साथ 21 सीटें जीतीं थीं लेकिन 2014 में इसकी सीटों की संख्या शून्य और 4.19% वोट शेयर पर सिमट गई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब बसपा ने सपा के साथ गठबंधन किया तो बीएसपी ने 10 सीटें और 3.66% वोट शेयर हासिल की थीं।
2014 में जब बसपा के पास लोकसभा में कोई सीट नहीं थी और 4.19% वोट शेयर था तो वह अपनी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो सकती थी लेकिन 2016 में चुनाव आयोग द्वारा किया गया एक संशोधन उसके लिए संजीवनी बूटी साबित हुआ।
2014 के चुनावों के बाद, 1968 के आदेश को 2016 में संशोधित किया गया था। यह संशोधन 1 जनवरी 2014 से लागू किए गए थे, जिसमें कहा गया था कि किसी पार्टी की राष्ट्रीय या राज्य मान्यता की समीक्षा उस चुनाव के बाद पहले चुनाव में नहीं की जाएगी जिसमें उन्हें दर्जा मिला है। जिसका अर्थ यह हुआ कि पार्टी के स्टेटस की पहली समीक्षा 10 साल बाद होगी। इसका लाभ सभी पार्टियों को मिला, यहां तक ​​कि बसपा को भी जो 1997 में राष्ट्रीय पार्टी बनी थी।
पार्टी की अगली समीक्षा 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद हुई और बसपा अपनी राष्ट्रीय स्थिति को बरकरार रखने में सक्षम रही क्योंकि यह पिछले दो विधानसभा चुनाव परिणामों के आधार पर चार या अधिक राज्यों में एक राज्य पार्टी थी।
लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद बसपा की राष्ट्रीय पार्टी की मान्यता के बारे में पूछे जाने पर, बसपा के उत्तर प्रदेश प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा, “राष्ट्रीय और राज्य पार्टी के दर्जे के लिए वोट शेयर से संबंधित कुछ नियम हैं। लेकिन इन नियमों और पार्टी की भविष्य की स्थिति के बारे में चुनाव आयोग ही बता सकता है।”
चुनाव आयोग ने फिलहाल इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है। सूत्रों ने कहा कि समीक्षा प्रक्रिया में आमतौर पर लोकसभा चुनाव के बाद महीनों लग जाते हैं क्योंकि चुनाव आयोग पार्टियों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है और निर्णय लेने से पहले उन्हें जवाब देने का मौका देता है।
पिछली बार यह प्रक्रिया उस वर्ष लोकसभा चुनाव के बाद 2019 के अंत में शुरू हुई थी और परिणाम अप्रैल 2023 में घोषित किए गए थे। इस दौरान आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिया गया था और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस हार गईं थीं और उनके राष्ट्रीय पार्टी टैग छिन गए थे।
एक राष्ट्रीय दल के रूप में एक राजनीतिक पार्टी को कुछ फायदे मिलते हैं, जिसमें देशभर के उम्मीदवारों के लिए उनके सामान्य चुनाव चिह्न के उपयोग की गारंटी, दिल्ली में कार्यालय के लिए जमीन या आवास, मतदाता सूची की मुफ्त प्रतियां और चुनाव के दौरान रेडियो, दूरदर्शन पर एयरटाइम शामिल हैं। वहीं, राज्य पार्टियों के मामले में उन्हें अपने संबंधित राज्यों में मतदाता सूची की मुफ्त प्रतियां और सार्वजनिक प्रसारकों के क्षेत्रीय केंद्रों में प्रसारण समय दिया जाता है।
2019 के चुनावों में सात राष्ट्रीय दलों ने चुनाव लड़ा था, भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सीपीआई, सीपीआई (एम), एनसीपी और एआईटीसी। वहीं, कुल 674 पार्टियां चुनाव मैदान में थीं। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) को 2016 में एक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हुआ था। हालांकि, परिणाम आने के बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने अपना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खो दिया था।
2014 के लोकसभा चुनावों की बात की जाये तो 464 राजनीतिक दलों ने प्रतियोगिता में भाग लिया था जिनमें से छह राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं – भाजपा, कांग्रेस, सीपीआई, सीपीआई-एम, एनसीपी और बीएसपी।
पहला चुनाव कुल 53 राजनीतिक दलों ने लड़ा था, जिनमें से 14 को राष्ट्रीय दल माना गया वहीं, दूसरी पार्टियों को राज्य आधारित दल माना गया। भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित किताब “लीप ऑफ फेथ” के अनुसार, 1953 के चुनावों से पहले 29 राजनीतिक दलों ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने की मांग की थी।
किताब में लिखा है, “उनमें से केवल 14 को दर्जा देने का निर्णय लिया गया था। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद उनमें से केवल चार को राष्ट्रीय दर्जा बरकरार रखने की अनुमति दी गई।” 1953 तक चार राष्ट्रीय पार्टियां थीं कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (सोशलिस्ट पार्टी और किसान मजदूर पार्टी के विलय के बाद बनी), सीपीआई और जनसंघ।
जिन पार्टियों ने अपना राष्ट्रीय टैग खो दिया वे थीं अखिल भारतीय हिंदू महासभा (एचएमएस), अखिल भारतीय भारतीय जनसंघ (बीजेएस), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), ऑल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन (एससीएफ), ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (मार्क्सवादी समूह) (एफबीएल-एमजी) और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (रुईकर समूह) (एफबीएल-आरजी), कृषक लोक पार्टी (केएलपी), बोल्शेविक पार्टी ऑफ इंडिया (बीपीआई), और रिवोल्यूशनरी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (आरसीपीआई)। सोशलिस्ट पार्टी और किसान मजदूर पार्टी ने पहला चुनाव अलग-अलग लड़ा था और बाद में उनका विलय होकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बन गई।
(Story By- Lalmani Verma, Damini Nath)
पश्चिम बंगाल में एक महिला और उसके साथी को कथित तौर पर टीएमसी नेता तजमुल उर्फ जेसीबी ने सार्वजनिक रूप से पीटा। टीएमसी विधायक ने महिला के अवैध संबंधों का हवाला देते हुए घटना को सही ठहराया, लेकिन बाद में यह कहा कि सजा का तरीका कुछ ज्यादा ही आक्रामक था। पुलिस ने जेसीबी को गिरफ्तार कर लिया है और मामले की जांच कर रही है।

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