मनीष सिसोदिया के गिरफ्तारी के खिलाफ 8 दल आए साथ, PM मोदी को लिखी चिट्ठी

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चिट्ठी में उन्होंने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। साथ ही आबकारी नीति के मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को ताजा उदाहरण के तौर पर पेश किया है।

मनीष सिसोदिया के गिरफ्तारी के खिलाफ 8 दल आए साथ, PM मोदी को लिखी चिट्ठी

आठ विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है। साथ ही आबकारी नीति के मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमत्री और आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को ताजा उदाहरण बताया गया है। चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं।

चिट्ठी पर जिन आठ नेताओं के नाम हैं उनमें- के चंद्रशेखर राव, ममता बनर्जी. अरविंद केजरीवाल, भगवंत मान, तेजस्वी यादव, फारुख अब्दुल्ला, शरद पवार, उद्धव ठाकरे और अखिलेश यादव के नाम हैं।

चिट्ठी की मुख्य बातें:

प्रधानमंत्री जी, हमें उमम्मीद है कि आप इस बात से सहमत होंगे कि भारत अभी भी एक लोकतांत्रिक देश है। विपक्षी दलों के नेताओं के खिलाफ लगातार हो रहा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग यह बता रहा है कि देश में एक निरंकुश तंत्र की स्थापना हो रही है।

26 फरवरी 2023 को दिल्ली के डिप्टी सीएम को सीबीआई के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप निराधार हैं। यह एक सियासी साजिश लग रही है। उनकी गिरफ्तारी से पूरे देश में लोग खफा हैं। मनीष सिसोदिया दिल्ली के स्कूलों में सुधार लाने के लिए अपनी पहचान बनाई है। उनकी गिरफ्तारी का दुनिया में एक गलत मतलब निकाला जा रहा है।

2014 के बाद से देश में केंद्रीय एजेंसियों के द्वारा जितने नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई है, उनमें से अधिकांश विपक्षी दलों के हैं। इतना ही नहीं, जिन नेताओं ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है।

पूर्व कांग्रेसी और असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की सीबीआई और ईडी ने 2014 और 2015 में सारदा चंट फंट घोटाले में जांच की थी। हालांकि, उनके भाजपा में शामिल होने के बाद मामला आगे नहीं बढ़ा। इसी तरह पूर्व टीएमसी नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में ईडी और सीबीआई की जांच के दायरे में थे, लेकिन राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने के बाद मामले आगे नहीं बढ़े। ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें महाराष्ट्र के नारायण राणे भी शामिल हैं।

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