उत्तर प्रदेश की बलिया लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर की वजह से चर्चा में रहती है। जहां भाजपा ने चंद्र शेखर के बेटे और बलिया से दो बार के सांसद नीरज शेखर को मैदान में उतारा है, वहीं, समाजवादी पार्टी ने एक ऐसे नेता पर अपना भरोसा जताया है जो 2019 का चुनाव मामूली अंतर से हार गए थे।
बलिया में नीरज शेखर के खिलाफ सपा के उम्मीदवार सनातन पांडे हैं, जो 2019 में इस सीट से मौजूदा भाजपा सांसद भरत सिंह से सिर्फ 15,000 वोटों के अंतर से हार गए थे। इन दोनों के अलावा बसपा के लल्लन सिंह भी मैदान में हैं।
इस सीट से शेखर की जीत का मतलब बीजेपी के लिए जीत की हैट्रिक होगी लेकिन अगर सनातन पांडे को जीत मिलती है तो यह सीट के 72 साल के इतिहास में पहली बार होगा कि कोई ब्राह्मण राजनेता इस सीट पर जीत हासिल करेगा। इससे पहले 14 बार क्षत्रिय नेताओं ने, तीन बार कायस्थ उम्मीदवारों ने और एक बार किसी यादव ने बलिया सीट पर जीत हासिल की है।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्र शेखर ने 1989 से 2004 के बीच दो चुनावों में यह सीट जीती। 2008 के उपचुनाव और 2009 के चुनाव में सपा ने यहां जीत हासिल की। जबकि पिछले दो चुनावों में बीजेपी बलिया सीट पर जीत हासिल कर रही है।
पूर्व पीएम के बेटे होने के अलावा भाजपा को नीरज के सपा के साथ पुराने संबंधों पर भरोसा है। चंद्र शेखर ने 1977 और 2007 के बीच आठ बार निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। 2007 में उनकी मृत्यु के बाद, नीरज ने सपा उम्मीदवार के रूप में उपचुनाव जीता और 2009 के चुनावों में सीट बरकरार रखी। 2014 का चुनाव हारने के बाद उन्हें सपा ने राज्यसभा के लिए नामांकित किया था। हालांकि, बाद में वह भाजपा में चले गए और उच्च सदन में उसके उम्मीदवार बन गए।
भाजपा बलिया जिला अध्यक्ष संजय यादव ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि केंद्र द्वारा किए गए कामों से पार्टी को मदद मिलेगी। वे कहते हैं, ”मजबूत पारिवारिक विरासत के अलावा, नीरज को देशव्यापी मोदी लहर से भी फायदा हो रहा है।”
सनातन पांडे जो पहले पांच विधानसभा चुनाव हार चुके हैं, उनका दावा है कि लोग भाजपा द्वारा क्षेत्र में कम काम किए जाने से असंतुष्ट हैं। पिछले महीने उनके जिला चुनाव अधिकारी (डीईओ) को धमकी देने के बाद विवाद खड़ा हो गया था, जिसके बाद सनातन के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने पांडे पर चुनावी प्रक्रिया में प्रभाव डालने का आरोप लगाया था।
बलिया में 18 लाख मतदाता हैं, जिनमें से ब्राह्मण और अनुसूचित जाति (एससी) लगभग 15% हैं, जबकि राजपूत और यादव क्रमशः 13% और 12% हैं। कुल मतदाताओं में मुसलमानों की संख्या लगभग 7% है। चुनाव परिणाम इस बात से तय होने की संभावना है कि एससी और अन्य संख्यात्मक रूप से कम लेकिन सामूहिक रूप से महत्वपूर्ण जातियां जैसे कि कुशवाह, पाल, निषाद, भूमिहार, कुर्मी और राजभर किस तरह से मतदान करते हैं।
कासिम बाजार क्रॉसिंग के निवासी डॉ एम एस फारूकी ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “एससी समुदाय के मतदाता दोनों उम्मीदवारों का समर्थन कर रहे हैं। नीरज को लोग उनकी अच्छी छवि के कारण पसंद करते हैं। मुस्लिम समुदाय के कुछ सदस्य भी उनका समर्थन कर रहे हैं लेकिन उनमें से अधिकांश के सनतान पांडे के लिए वोट करने की उम्मीद है।”
भाजपा और सपा दोनों के दावेदारों के लिए सफलता की राह आसान नहीं लग रही है, खासकर उनकी पार्टियों के वरिष्ठ स्थानीय नेताओं के उदासीन रवैये के कारण, जिनमें से कई पार्टी के टिकट की दौड़ में थे।
सपा उम्मीदवार सनातन पांडे के मामले में, ऐसा लगता है कि उन्हें टिकट न केवल इसलिए मिला है क्योंकि वह 2019 की लड़ाई में भाजपा के वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ से सिर्फ 15,000 से अधिक वोटों से हार गए थे, बल्कि दो अन्य दावेदारों अंबिका चौधरी और नारद राय के बीच खींचतान के कारण भी मिला था।
बलिया-सदर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक नारद राय फेफना विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की रैली के मंच पर नजरअंदाज किए जाने से नाराज हैं। बताया जाता है कि राय भाजपा उम्मीदवार नीरज शेखर के संपर्क में थे और भविष्य की रणनीति तय करने के लिए एक मंदिर में अपनी जाति के लोगों के साथ बैठक कर रहे थे।
दूसरी ओर, बलिया में भाजपा के तीन प्रमुख नेता, वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’, पूर्व मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला सक्रिय रूप से शेखर के लिए प्रचार नहीं कर रहे थे। हालांकि अब दोनों भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के निर्देश के बाद अभियान में शामिल हो गए हैं।
बलिया, लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। सपा के पास तीन (फेफना, बैरिया और मोहम्मदाबाद) हैं जबकि भाजपा और उसकी सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के पास क्रमशः बलियानगर और जहूराबाद हैं।
पिछले आम चुनाव में यहां से बीजेपी के वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ ने जीत हासिल की थी, जिन्होंने सपा के सनातन पांडे को हराया था। सनातन को 4.53 लाख और वीरेंद्र को 4.69 लाख वोट मिले थे।