लोकसभा चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा लोकपर्व होता है. हमारे यहां पिछले लगभग दो महीने से लोकसभा चुनावों की प्रक्रिया चल रही है. 7 चरणों में हो रहा लोकसभा चुनाव अब अपने अंतिम पायदान की ओर है. 1 जून को 7वें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. 4 जून को रिजल्ट घोषित किए जाएंगे. इस लंबी प्रक्रिया के दौरान नेताओं से लेकर आम आदमी तक और इस चुनाव में लगे निर्वाचन आयोग से लेकर सुरक्षाकर्मी और मतदानकर्मी तक को अलग-अलग अनुभव हुए हैं.
चुनाव के दौरान मतदान कर्मचारियों को बड़ी ही रोचक घटनाओं से रूबरू होना पड़ा. कोई दुर्गम पहाड़ पर जान जोखिम में डालकर पोलिंग बूथ पर पहु्ंचा तो किसी ने रस्सों से पकड़कर नदी पार की. किसी को नेता की दबंगई झेलनी पड़ी तो किसी को मतदाता के गुस्से का शिकार होना पड़ा. कोई केवल एक आदमी का वोट डलवाने के लिए मीलों पैदल चला. घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर जंगल-झाड़ी, पहाड़, नदी-नालों को पार करते हुए मतदान कराने वाले कर्मचारी अब धीरे-धीरे अपने घर-दफ्तर लौट रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में चुनाव की ड्यूटी में लगे निर्वाचन अधिकारियों को अपने काम के दौरान ‘मृत’ मतदाता से रूबरू होने से लेकर अंधेरी गलियों में बने विद्यालयों तक पहुंचने और बांध की मनमोहक खूबसूरती का लुत्फ उठाने से लेकर शौचालयों की सफाई करने जैसी अजीबो-गरीब चुनौतियों का सामना करना पड़ा.
1 जून को चुनावी रण का अंतिम पड़ाव, 7वें चरण में पीएम मोदी सहित कई बड़े दिग्गज मैदान में
अपने रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से पार पाते हुए इन चुनावकर्मियों ने लोकतंत्र को बरकरार रखने की अपनी प्रतिबद्धता को तो दोहराया ही, साथ ही भारत जैसे देश में संसदीय चुनाव कराने की जटिल प्रक्रिया को संपन्न करना भी सुनिश्चित किया.
देश में लोकसभा चुनाव के सात में से छह चरण लगभग पूरे हो चुके हैं, जिसके बाद ‘भाषा’ ने पश्चिम बंगाल में कुछ ऐसे निर्वाचन अधिकारियों से उनका चुनाव अनुभव जानने की कोशिश की, जो हाल ही में अपनी ड्यूटी खत्म कर अपने-अपने कार्यालय लौटे हैं.
दुर्गापुर के एक विद्यालय में पढ़ाने वाले शिक्षक अरुप करमाकर ने चुनाव के दौरान के अपने अनुभव को साझा किया. करमाकर ने बताया कि उनकी ड्यूटी आसनसोल लोकसभा क्षेत्र में आने वाली बाराबनी विधानसभा के एक स्कूल में बने बूथ पर थी. उन्होंने बताया कि जैसे ही वे अपनी टीम के साथ मतदान केंद्र पर पहुंचे तो सभी चुनावकर्मी, यहां तक की वे खुद हैरान रह गए. मैथन बांध के आसपास की पहाड़ियों और विशाल जलाशय से घिरा यह दृश्य बेहद खूबसूरत था. अरुप करमाकर ने बताया कि उन्हें किसी भी राजनीतिक दल के समर्थकों या कार्यकर्ताओं ने परेशान नहीं किया. करमाकर ने मतदान वाली सुबह तो जलाशय में डुबकी भी लगाई.
अरुप करमाकर ने देखा कि शाम को स्कूल के बगल के एक मैदान में लगभग 50 गायों का झुंड इकट्ठा हो गया. यह जगह दरअसल उनका नियमित आश्रय स्थल थी. झुंड सुबह के समय वहां से चला जाता और सूर्यास्त के बाद वापस आ जाता था.
जब वोट डालने पहुंचा मृत आदमी
करमाकर और उनके साथियों के लिए सब कुछ बिल्कुल सही चल रहा था लेकिन चुनावकर्मी उस समय हैरानी में पड़ गये जब उन्होंने एक ‘मृत’ व्यक्ति को अपने सामने पाया. करमाकर ने कहा, ”मतदान के दौरान एक व्यक्ति मतदान केंद्र में आया. जब उसके नाम को सूची में जांचा गया तो उसका नाम मृतकों की सूची में था जबकि वह वास्तव में जीवित था और मतदान करने के लिए कह रहा था. बूथ पर मौजूद विभिन्न राजनीतिक दलों के मतदान कार्यकर्ताओं ने उसके दावे को सही पाया. उसके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए सभी आवश्यक दस्तावेज थे और सत्यापन के बाद, उसे मतदान करने की अनुमति दी गई.
साफ करना पड़ा टॉयलेट
बर्धमान-दुर्गापुर लोकसभा क्षेत्र के एक बूथ पर तैनात एक अन्य स्कूल शिक्षक अंशुमन रॉय ने पाया कि जो शौचालय साफ-सुथरे थे उनमें केंद्रीय बल के जवानों ने ताला लगा दिया और जो गंदे थे वे चुनाव अधिकारियों के लिए खोलकर रखे गये थे.
हुगली जिले के आरामबाग लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत हरिपाल इलाके में चुनाव अधिकारी रथिन भौमिक को मतदान से पहले शौचालयों को साफ करना पड़ा ताकि उन्हें उपयोग के लायक बनाया जा सके.
भौमिक ने कहा कि इन शौचालयों को बरसों से इस्तेमाल नहीं किया गया था. इस बारे में जब स्कूल की संचालिका से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि स्कूल में सिर्फ 40 विद्यार्थी हैं और उनमें से कोई भी इन शौचालयों को इस्तेमाल नहीं करता है. बाद में गांव शिक्षा समिति के कुछ सदस्य एक ब्रश और सफाई वाला तरल पदार्थ लेकर आए, जिनसे हमने शौचालयों को साफ किया.
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