वोटिंग खत्म हुई, पीछे रह गए कुछ सवाल। क्या सच में NDA की सीटें 400 और BJP की सीटें 370 पार होंगी। INDIA ब्लॉक कितनी सीटें जीत पाएगा। कांग्रेस कितनी सीटें जीतेगी। इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने के लिए चुनाव के दौरान भास्कर के 100 रिपोर्टर 542 सीटों तक ग
हर राज्य के पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स, सीनियर जर्नलिस्ट, आम लोगों से वहां के राजनीतिक हालात, उससे बनने वाले समीकरण, बड़े मुद्दे और राज्य-केंद्र की योजनाओं के असर के बारे में पूछा और उसे समझा। इस हिसाब से समझ आया कि इस बार BJP के नेतृत्व वाले NDA को 281-350 सीटें और विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक को 145-201 सीटें मिल सकती हैं।
किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं…
अब जानिए राज्यों में क्या हो सकता है रिजल्ट
हार-जीत के फैक्टर
1. 2019 के चुनाव में BJP गठबंधन ने और 2014 में अकेले BJP ने सभी 25 सीटें जीती थीं। उसके लिए क्लीन स्वीप की हैट्रिक लगाना मुश्किल है। फिर भी मोदी फैक्टर की वजह से पार्टी अच्छी स्थिति में है।
2. कांग्रेस ने 3 सीटों पर CPI, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन किया है। लोकल जातिगत समीकरण का फायदा गठबंधन को मिल रहा है।
हार-जीत के फैक्टर
1. 2005 के बाद पहला चुनाव है, जब पूर्व CM शिवराज सिंह चौहान मुख्य भूमिका में नहीं है। विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने शिवराज के चेहरे पर वोट किया था। लोकसभा चुनाव में महिला वोटर्स में वैसा उत्साह नजर नहीं आया।
2. BJP की तुलना में कांग्रेस ने कैंडिडेट चुनने में ज्यादा सतर्कता बरती है। राहुल और प्रियंका गांधी ने उन्हीं सीटों पर प्रचार किया, जहां कांग्रेस मुकाबले में थी, यानी कांग्रेस ने चुनिंदा सीटों पर ही ताकत लगाई है। उसे इसका फायदा मिल सकता है।
हार-जीत के फैक्टर
1. BJP ने 48 मौजूदा सांसदों को टिकट दिया है। ज्यादातर के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी है। इसलिए BJP को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
2. इस बार सपा का मुस्लिम वोटर बिखरा नहीं है। पोलराइजेशन न होने से सपा को फायदा और BJP को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
3. सपा-कांग्रेस गठबंधन में हैं। कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। सपा के सपोर्ट से रायबरेली, अमेठी, सहारनपुर जैसी सीटों पर कांग्रेस बढ़त में है।
4. 2019 के चुनाव में गठबंधन की वजह से सपा का मुस्लिम वोट बसपा में शिफ्ट हुआ था। इस बार ऐसा नहीं है। बसपा से दलित वोट भी छिटका हुआ है। इसलिए एक सीट जीतना भी मुश्किल है।
हार जीत के फैक्टर
1. बिहार में PM मोदी ने 16 रैलियां कीं। इसका असर भी दिखा। NDA ने ज्यादातर मौजूदा सांसदों को टिकट दिया है, एंटी इनकम्बेंसी के बावजूद लोगों ने मोदी के नाम पर उन्हीं को वोट दिए हैं।
2. चुनाव से ऐन पहले नीतीश कुमार की वापसी ने NDA को मजबूत किया। जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा भी साथ आ गए। चिराग पासवान पहले से NDA का हिस्सा हैं। इससे NDA, INDIA ब्लॉक से ज्यादा ताकतवर हो गया।
3. 10 साल बाद RJD सुप्रीमो लालू यादव बिहार में एक्टिव थे। उन्होंने लीक से हटकर फैसले लिए। यादव की परंपरागत सीट पर कुशवाहा को टिकट दिया। वे नॉन यादव ओबीसी में विस्तार करना चाहते थे, लेकिन उनका प्रयोग फेल होता दिख रहा है।
4. पूरे चुनाव में राहुल गांधी सिर्फ 2 बार बिहार आए और 4 सभाएं की। सोनिया-प्रियंका गांधी एक बार भी नहीं आईं। इससे मैसेज गया कि INDIA ब्लॉक में एकजुटता नहीं है।
5. तेजस्वी यादव ने रोजगार, आरक्षण और संविधान बदलने के नैरेटिव को मजबूती से उठाया। हालांकि, NDA के परिवारवाद और जंगलराज के मुद्दे पर तेजस्वी के मुद्दे फीके पड़ गए।
हार-जीत के फैक्टर
1. 2019 में BJP ने सभी 26 सीटें जीती थीं, इस बार पार्टी कुछ सीटें गंवा सकती है। इसकी वजह पुरुषोत्तम रूपाला का क्षत्रियों के खिलाफ विवादित बयान है। इस एक बयान ने चुनाव का रुख बदल दिया।
2. गुजरात में इस बार 3% कम वोटिंग हुई है। माना जा रहा है कि BJP वर्कर्स इस बार वोटर को बूथ तक नहीं ला पाए।
3. इस बार कांग्रेस AAP के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी। इससे पारंपरिक वोट बैंक मजबूत करने और आरक्षित सीटों पर पार्टी को मदद मिलती दिख रही है।
हार-जीत के फैक्टर
1. BJP को महतारी वंदन योजना का बहुत फायदा हुआ है। इस योजना में 70 लाख महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए दिए जा रहे हैं। इससे महिलाओं का वोट पार्टी को मिला है।
2. BJP ने कांग्रेस सरकार के 5 साल के दौरान हुए घोटालों को मुद्दा बनाया। इससे कांग्रेस के खिलाफ माहौल बना।
हार-जीत के फैक्टर
1. पश्चिम बंगाल में नागरिकता संशोधन कानून, यानी CAA का असर पड़ा है। इससे TMC से नाराज चल रहा मुस्लिम वोटर वापस उसके पाले में आ गए।
2. BJP को संदेशखाली में महिलाओं से रेप और करप्शन जैसे मुद्दे उठाने का फायदा मिला है। लेकिन CAA की वजह से उसे नुकसान हुआ है।
3. कांग्रेस और CPI(M) अलायंस 6-7 सीटों पर जीतने का दावा कर रहा है, लेकिन ममता और मोदी की पॉपुलैरिटी के मुकाबले पार्टी के पास फेमस चेहरा न होने से पार्टी को नुकसान हुआ है।
हार-जीत के फैक्टर
1. 2019 के चुनाव में BJP ने महाराष्ट्र में 23 सीटें जीती थीं। इस बार भी BJP इतनी सीटें जीत सकती है। NDA की 10 से 12 सीटें कम होती दिख रही हैं, क्योंकि सहयोगी पार्टियों शिवसेना और NCP का उम्मीद के मुताबिक सीटें जीतना मुश्किल है।
2. शिवसेना (उद्धव गुट) और शरद पवार की पार्टी NCP (SP) कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े। पार्टी टूटने की वजह से शिवसेना की सीटें घटती दिख रही हैं। पार्टी शरद पवार की भी टूटी, लेकिन सीटों के लिहाज से उन्हें बहुत नुकसान होता नहीं दिख रहा है।
हार जीत के फैक्टर
1. BJP सांसदों के टिकट कटने पर AAP ने एंटी इनकम्बेंसी का मुद्दा उठाया। हालांकि, इसका असर जमीन पर नहीं दिखा। इससे ये मैसेज जरूर गया कि BJP जीते कैंडिडेट को भी जनता की खातिर बदल सकती है।
2. करप्शन केस में फंसे CM अरविंद केजरीवाल समेत AAP के बड़े नेताओं की गिरफ्तारी का फायदा AAP से ज्यादा BJP को मिलता दिखा।
3. राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ हुई बदसलूकी के बाद AAP के खिलाफ माहौल बना, जिससे पार्टी को नुकसान होगा।
हार-जीत के फैक्टर
1. राज्य में ढाई साल से आम आदमी पार्टी की सरकार है। लोगों को फ्री बिजली और राशन की होम डिलीवरी करने का फायदा पार्टी को मिलता दिख रहा है।
2. किसान राज्य और केंद्र सरकार से नाराज हैं। इसका फायदा कांग्रेस को होगा। हालांकि, कई सीटों पर नेताओं की गुटबाजी हावी है। स्टेट में लीडरशिप बदलने से नाराज बड़े नेताओं का जाना पार्टी के खिलाफ गया है।
3. BJP राम मंदिर और मोदी फैक्टर के सहारे थी। शहरी इलाकों में पार्टी मजबूत है, लेकिन ग्रामीण एरिया में किसानों की नाराजगी से नुकसान हुआ है।
हार-जीत के फैक्टर
1. हरियाणा में मोदी फैक्टर और राम मंदिर का असर दिखा है। इसके अलावा पार्टी को मजबूत कैंडिडेट का एडवांटेज मिल रहा है। हालांकि, एंटी इनकम्बेंसी के अलावा जाटों-किसानों की नाराजगी से सीटें कम हो सकती हैं।
2. आम लोगों में BJP सरकार से नाराजगी कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है। ग्रामीण इलाकों में BJP के प्रति किसानों के गुस्से का फायदा कांग्रेस को मिला है। इसलिए उसकी सीटें बढ़ती दिख रही हैं।
हार-जीत के फैक्टर
1. मोदी फैक्टर के अलावा लखपति दीदी, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान योजना, चार धाम ऑल वेदर रोड, ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन का फायदा लोगों को मिला है। इससे BJP के पक्ष में माहौल बना।
2. कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी को छोड़कर कोई बड़ा चेहरा प्रचार के लिए नहीं पहुंचा। इसका नुकसान कांग्रेस को होता दिखा है। वहीं, PM मोदी लगातार केदारनाथ समेत उत्तराखंड के अलग-अलग स्पॉट पर पहुंचते रहे।
हार-जीत के फैक्टर
1. BJP ने पूरा मोदी मैजिक और राम मंदिर मुद्दे पर लड़ा है। विधायक तोड़ने से नेगेटिव नैरेटिव बना है। राज्य में अग्निवीर बड़ा मुद्दा है, इसका नुकसान होता दिख रहा है।
2. कांग्रेस विधायकों की बगावत से लोगों में पार्टी और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए सहानुभूति है। हमीरपुर को छोड़कर बाकी तीनों सीटों पर मजबूत कैंडिडेट हैं।
हार-जीत के फैक्टर
1. तमिलनाडु में DMK-कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य की DMK सरकार महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए और बस में फ्री सफर दे रही है, चुनाव में इन योजनाओं का सबसे ज्यादा असर पड़ा।
2. AIADMK का पूरा फोकस राज्य की दूसरे नंबर की पार्टी बने रहने पर रहा। पार्टी इसमें कामयाब होते दिख रही है। अगर पार्टी के लिए सबकुछ अच्छा रहा, तो वो 4 सीटें जीत सकती है।
3. तमिलनाडु में पूरी ताकत लगाने के बावजूद BJP को सीटें मिलती नहीं दिख रही हैं। इसकी वजह है कि तमिलनाडु में राम मंदिर, CAA, यूनिफॉर्म सिविल कोड या धारा 370 हटाने का पॉजिटिव इंपैक्ट नहीं हुआ।
हार-जीत के फैक्टर
1. कांग्रेस की गारंटी लोगों में काफी पॉपुलर हैं। खासतौर से महिलाओं को 2 हजार रुपए और फ्री बस सफर से महिलाओं के वोट एकतरफा मिलते दिख रहे हैं।
2. BJP का राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा कर्नाटक में फेल हो गया। अभी जितनी सीटें पार्टी जीत रही है, उसके पीछे PM मोदी की पॉपुलैरिटी है।
हार-जीत के फैक्टर
1. 2019 में 22 सीटें जीतने वाली जगनमोहन रेड्डी की YSR कांग्रेस लगातार दूसरी बार सबसे बड़ी पार्टी बनती दिख रही है। हालांकि, उसे कम से कम 10 सीटों का नुकसान भी हो रहा है। इसकी वजह करप्शन और डेवलपमेंट के मुद्दे पर लोगों की नाराजगी और एंटी इनकम्बेंसी है।
2. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी TDP मजबूत तरीके से वापसी कर दिख रही है। पार्टी को पिछले चुनाव में 3 सीटें मिली थीं, इस बार ये संख्या 10-12 हो सकती है। हालांकि, सहयोगी BJP और जनसेना खास कमाल करती नहीं दिख रही हैं।
3. कांग्रेस CPI और CPI(M) के साथ चुनाव लड़ी। जगनमोहन रेड्डी की बहन YS शर्मिला को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, लेकिन कमजोर संगठन की वजह से इसका बहुत असर होता नहीं दिख रहा है।
हार-जीत के फैक्टर
1. तेलंगाना में कांग्रेस सरकार बनने के बाद रेवंत रेड्डी सरकार ने महिलाओं के लिए बस का सफर फ्री किया है। सिलेंडर 300 रुपए में कर दिया। 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ कर दिया। इससे लोगों में रेवंत सरकार को लेकर पॉजिटिव रिस्पॉन्स है।
2. BJP ने पिछली बार 17 में से 4 सीटें जीती थीं। इस बार ये नंबर बढ़ता दिख रहा है। पार्टी ने जहीराबाद और मेडक सीटों से BRS से आए नेताओं को टिकट दिया था, दोनों सीटें पार्टी जीत सकती है।
3. पूर्व CM चंद्रशेखर राव की BRS सबसे कमजोर साबित हो रही है। चुनाव से पहले बेटी कविता की गिरफ्तारी और बड़े नेताओं के पार्टी छोड़से BRS का पॉलिटिकल ग्राफ काफी गिर गया है।
हार जीत के फैक्टर
1. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, यानी UDF सबसे ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में है। कांग्रेस सबसे मजबूत है। उसने 15 सीटों पर पुराने कैंडिडेट को ही टिकट दिया है।
2. BJP ने केरल के तटीय इलाकों में पकड़ मजबूत की है। त्रिचूर और तिरुवनंतपुरम सीट पर पार्टी ने कड़ी टक्कर दी है। PM मोदी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। इसके बावजूद पार्टी को सीटें मिलना मुश्किल है।
3. करप्शन के आरोपों के बाद लोग लेफ्ट से नाराज हैं। हालांकि, कई सीटों पर लेफ्ट के मजबूत उम्मीदवार हैं।
हार-जीत के फैक्टर
1. BJP ने ओडिशा में आक्रामक तरीके से प्रचार किया है। इसका फायदा पार्टी को होता दिख रहा है। 2019 में पार्टी ने 8 सीटें जीती थीं, इस बार ये नंबर लगभग डबल हो सकता है।
2. BJP की बढ़त का सबसे ज्यादा नुकसान नवीन पटनायक की पार्टी BJD को है। चुनाव से पहले BJP से गठबंधन की खबरों से पार्टी के कार्यकर्ता और नेता कन्फ्यूज हुए। इस वजह से वे BJP के खिलाफ पूरी ताकत से प्रचार नहीं कर पाए।
हार-जीत के फैक्टर
1. झारखंड में मोदी फैक्टर का असर दिखा है। उनके चेहरे पर ही वोटिंग हुई। राम मंदिर जैसे मुद्दों पर भी BJP को फायदा मिलता दिख रहा है।।
2. कांग्रेस का संगठन राज्य में कमजोर है। कोई पॉपुलर फेस नहीं है। उसकी सहयोगी JMM के नेता हेमंत सोरेन करप्शन के आरोप में जेल में हैं, इसलिए विपक्ष राज्य में अपने पक्ष में माहौल नहीं बना पाया।
हार-जीत के फैक्टर
1. जम्मू सीट पर हिंदू आबादी के साथ मोदी फैक्टर काफी मजबूत है। उधमपुर से डॉ. जितेंद्र सिंह मजबूत कैंडिडेट हैं। हालांकि, यहां कांग्रेस, PDP और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन ने उनका रास्ता मुश्किल कर दिया है। ।
2. कश्मीर की तीनों सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस मजबूत है। BJP तीनों सीटों पर चुनाव नहीं लड़ रही हैं। PDP के कमजोर होने का फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिलेगा।
3. महबूबा मुफ्ती की पार्टी PDP का जम्मू में दोनों सीटों पर INDIA ब्लॉक को समर्थन देना और कश्मीर में अलग होना उन्हें कमजोर कर रहा है।
हार-जीत के फैक्टर
1. गोवा में BJP मोदी मैजिक और डबल इंजन की सरकार के बलबूते बढ़त में है। पार्टी ने डेवलपमेंट के नाम पर वोट मांगे, जिसका असर दिखा है।
2. गोवा में कैंडिडेट कांग्रेस को आम आदमी पार्टी और TMC का सपोर्ट है। उनका अपना वोट बैंक है, जो कांग्रेस को फायदा पहुंचा सकता है।
हार-जीत के फैक्टर
1. असम में CM हिमंता बिस्वा सरमा की पॉपुलैरिटी हर तबके में है। यही वजह है कि राज्य में कांग्रेस BJP सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार को मुद्दा नहीं बना पाई।
2. विपक्ष ने यहां INDIA ब्लॉक की तरह यूनाइडेट अपोजिशन फोरम असम बनाया है। इसमें कांग्रेस, TMC, AAP, CPI समेत 16 पार्टियां हैं। हालांकि, TMC ने 4 सीटों पर कैंडिडेट उतार दिए। इस फूट का असर नतीजों पर पड़ेगा।
3. पॉपुलर मुस्लिम नेता बदरुद्दीन अजमल लगातार चौथी बार धुबरी सीट जीत सकते हैं। इस सीट पर 50% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। BJP ने यहां कैंडिडेट नहीं उतारा है।
हार-जीत के फैक्टर
1. करीब 13 महीने से चल रही हिंसा का नुकसान BJP को होता दिख रहा है। शुरुआत में लग रहा था कि BJP अलायंस दोनों सीटें जीत सकती हैं, लेकिन अब ये मुश्किल लग रहा है।
2. कांग्रेस ने मणिपुर की दोनों सीटों पर चुनाव लड़ा है। BJP के खिलाफ लोगों में गुस्से का फायदा पार्टी को मिल रहा है।
हार-जीत के फैक्टर
1. BJP ने डेवलपमेंट के मुद्दे पर चुनाव लड़ा, वहीं INDIA ब्लॉक संविधान बचाने जैसे मुद्दे लोगों के बीच लेकर गया। लोगों ने BJP की स्कीम पर वोट किए।
2. त्रिपुरा में CPI-M और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा है। नेशनल लेवल पर भले दोनों पार्टियों में अलायंस है, लेकिन त्रिपुरा के नेता इससे खुश नहीं दिखे।
हार-जीत के फैक्टर
1. अरुणाचल में BJP को टक्कर देने वाला विपक्ष ही नहीं है। यही वजह है कि यहां की दोनों सीटें BJP आसानी से जीत सकती है। पेपर लीक जैसे मुद्दे हैं, लेकिन इससे रिजल्ट पर असर नहीं पड़ता दिख रहा।
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