Katchatheevu Island: क्या कांग्रेस ने सच में श्रीलंका को दे दिया था कच्चातिवु द्वीप? समझें PM मोदी द्वारा लगाए गए आरोपों की सच्चाई – Jansatta

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आज एक खबर सामने आई कि कांग्रेस के शासनकाल के दौरान पूर्व पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था। इसको लेकर पीएम मोदी (PM Narendra Modi) ने कांग्रेस पार्टी (Congress) पर जमकर हमला बोला है और देश तोड़ने तक के आरोप लगाए हैं। पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने संवेदनहीनता दिखाते हुए अपना हिस्सा श्रीलंका को दे दिया था।
बता दें कि पहले पीएम मोदी एक्स पर पोस्ट किया था और फिर मेरठ में चुनावी रैली के दौरान भी कांग्रेस पर देश तोड़ने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने आज ही कहा कि कांग्रेस का एक और देश विरोधी कारनामा देश के सामने आया है। तमिलनाडु में भारत के समुद्री तट से कुछ दूर, कुछ किलोमीटर दूरी पर श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच में समुंदर में एक टापू है, एक द्वीप है कच्चाथीवू. अलग-अलग नाम भी लोग बोलते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि ये द्वीप सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। देश आजाद हुआ तब हमारे पास था और ये हमारे भारत का अभिन्न अंग रहा है लेकिन कांग्रेस ने चार-पांच दशक पहले कह दिया कि ये द्वीप तो गैर-जरूरी है, फालतू है, यहां तो कुछ होता ही नहीं है और ये कहते हुए मां भारती का अंग आजाद भारत में ये कांग्रेस के लोगों ने, इंडी अलायंस के साथियों ने मां भारती का एक अंग काट दिया और भारत से अलग कर दिया।
पीएम मोदी ने तो आज कांग्रेस पर कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को देने के आरोप लगा दिए लेकिन आखिर इसकी सच्चाई क्या है। इसको लेकर बता दें कि तमिलनाडु बीजेपी प्रमुख के अन्नामलाई ने संकेत दिया था कि कांग्रेस ने कभी भी छोटे, निर्जन द्वीप को ज्यादा महत्व नहीं दिया। रिपोर्ट के अनुसार, जवाहरलाल नेहरू ने एक बार यहां तक ​​​​कहा था कि वह “द्वीप पर अपना दावा छोड़ने” में बिल्कुल भी संकोच नहीं करेंगे।
बता दें कि यह स्टोरी पुरानी है। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत ने 1974 में कच्चाथीवू पर अपना दावा छोड़ दिया था, उसे अच्छी तरह से इतिहास में जगह भी दी गई है लेकिन भाजपा की तमिलनाडु यूनिट ने इसे राज्य के सबसे गर्म राजनीतिक विषयों में से एक बना दिया है।
कच्चातिवु द्वीप की बात करें तो यह भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में 285 एकड़ का एक निर्जन स्थान है। अपने सबसे चौड़े बिंदु पर इसकी लंबाई 1.6 किमी से अधिक नहीं है और 300 मीटर से थोड़ा अधिक चौड़ा है। यह द्वीप भारतीय तट से लगभग 33 किमी दूर रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह जाफना से लगभग 62 किमी दक्षिण-पश्चिम में श्रीलंका के उत्तरी सिरे पर है और श्रीलंका के बसे हुए डेल्फ़्ट द्वीप से 24 किमी दूर है।
द्वीप पर सेंट एंथोनी चर्च है, जिसका संचालन भारत और श्रीलंका दोनों के ईसाई पुजारी सेवा के जरिए करते हैं। इसमें भारत और श्रीलंका दोनों के श्रद्धालु तीर्थयात्रा करते हैं। 2023 में 2,500 भारतीयों ने त्योहार के लिए रामेश्वरम से कच्चातिवू की यात्रा की थी। ब्रिटिश राज के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया था, लेकिन 1921 में भारत और श्रीलंका, दोनों ने मछली पकड़ने की सीमा निर्धारित करने के लिए कच्चातिवू पर अपना दावा किया था। एक सर्वेक्षण में श्रीलंका में कच्चातिवु को चिह्नित किया गया था, लेकिन भारत के एक ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल ने रामनाद साम्राज्य द्वारा द्वीप के स्वामित्व का हवाला देते हुए इसे चुनौती दी।
साल 1974 में, इंदिरा गांधी ने भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा को हमेशा के लिए सुलझाने का प्रयास किया था। इस समझौते को ‘भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते’ के रूप में जाना जाता है इंदिरा गांधी ने कच्चातिवु को श्रीलंका को ‘सौंप’ दिया। उस समय उन्होंने सोचा कि इस द्वीप का कोई रणनीतिक महत्व नहीं है और इस द्वीप पर भारत का दावा ख़त्म करने से भारत और श्रीलंका के संबंध में मजबूत होंगे।
इसके अलावा समझौते के अनुसार भारतीय मछुआरों को अभी भी कच्चाथीवू तक पहुंचने की अनुमति थी। दुर्भाग्य से समझौते से मछली पकड़ने के अधिकार का मुद्दा सुलझ नहीं सका। श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों के कच्चातिवू तक पहुंचने के अधिकार को सीमित कर दिया, जो कि नया टकराव बन गया।
इस मुद्दे पर तमिलनाडु की बात करें तो राज्य विधानसभा से परामर्श किए बिना कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया गया था। उस समय ही द्वीप पर रामनाद जमींदारी के ऐतिहासिक नियंत्रण और भारतीय तमिल मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकार का हवाला देते हुए इंदिरा गांधी के कदम के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए थे। इसके बाद साल 1991 श्रीलंकाई गृहयुद्ध में भारत के विनाशकारी हस्तक्षेप के बाद, तमिलनाडु विधानसभा ने फिर से कच्चातिवू को पुनः प्राप्त करने और तमिल मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकारों की बहाली की मांग की। तब से कच्चातिवू बार-बार तमिल राजनीति में सामने आता रहा है।
2008 में तत्कालीन अन्नाद्रमुक सुप्रीमो और दिवंगत पूर्व सीएम जयाललिता ने अदालत में एक याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि संवैधानिक संशोधन के बिना कच्चातिवू को किसी अन्य देश को नहीं सौंपा जा सकता है। याचिका में तर्क दिया गया कि 1974 के समझौते ने भारतीय मछुआरों के पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकार और आजीविका को प्रभावित किया है।
इस मामले में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सफाई दी है और कहा कि जिन परिस्थितियों और संदर्भों में ये फैसले लिए गए, उन्हें नजरंदाज कर कांग्रेस नेताओं को बदनाम किया जा रहा है। 1974 में उसी साल जब कच्चावितु श्रीलंका हिस्सा बना था तो सिरिमा भंडारनायके-इंदिरागांधी समझौते ने श्रीलंका से 6 लाख तमिल लोगों को भारत वापस लाने की अनुमति दी गई थी। इंदिरा गांधी के चलते तत्कालीन पीएम इंदिरा गाांधी ने 6 लाख राज्यविहीन लोगों के लिए मानवाधिकार और सम्मान सुरक्षित किया था।
जयराम रमेश ने कहा कि तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने राज्य की जनता का ध्यान भटकाने वाला मुद्दा बनाने के लिए एक RTI दायर की, जबकि महत्वपूर्ण सार्वजनिक मुद्दों पर लाखों आरटीआई के सवालों को नजरअंदाज कर दिया जाता है या रिजेक्ट कर दिया जाता है, इसे वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है और तेजी से उत्तर दिया जाता है। अन्नामलाई बहुत आसानी से मीडिया के कुछ मित्रवत लोगों को सवालों के जवाब दे देते हैं, प्रधानमंत्री तुरंत इस मुद्दे को तूल देते हैं।
हालाँकि कच्चातिवू पर केंद्र सरकार की स्थिति नहीं बदली है। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि चूंकि द्वीप हमेशा विवाद में रहा है इसलिए भारत से संबंधित कोई भी क्षेत्र नहीं दिया गया और न ही संप्रभुता छोड़ी गई है। वहीं बीजेपी इस मुद्दे को तेजी से उठा रही है।

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