लोकसभा चुनाव: मह‍िलाओं पर 2014 से की गई मेहनत की फसल 2024 में काटेंगे नरेंद्र मोदी? – Jansatta

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भारत में राजनीति काफी हद तक पुरुषों का क्षेत्र रहा है। चुनाव में मतदान से लेकर राजनीतिक उम्मीदवारी, सक्रियता और सहभागिता के मामले में महिलाएं काफी पीछे रही हैं। पर पिछले कुछ सालों में इसमें काफी बदलाव दिखाई दिया है। महिलाओं ने जहां चुनावों के दौरान मतदान केंद्र तक जाने में सक्र‍ियता द‍िखाई है, वहीं अपने पुरुष सगे-संबंधियों की मनपंसद पार्टी को छोड़कर, अपनी पसंद की पार्टी को वोट करना भी शुरू किया है। इस नए बदलाव से भाजपा को काफी फायदा हुआ है। पार्टी ने प्रचार और योजनाओं के माध्यम से महिलाओं के बीच अपनी पकड़ मजबूत की है।
नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही मह‍िलाओं से जुड़े बुन‍ियादी मुद्दों पर बात करनी शुरू की थी और उन्‍हें ध्‍यान में रख कर योजनाएं बनाना शुरू क‍िया था। शौचालय को उन्‍होंने मह‍िलाओं की आबरू से जोड़ते हुए केंद्रीय मुद्दा बना द‍िया था। उज्‍जवला योजना सह‍ित कई योजनाएं मह‍िलाओं को केंद्र‍ित कर लाई गईं। ड्रोन दीदी, करोड़पत‍ि दीदी जैसी योजनाओं की बात कर भी उन्‍होंने मह‍िला वोटर्स का व‍िश्‍वास हास‍िल करने की कोश‍िश की। सर्वे बताते हैं क‍ि इसका उन्‍हें फायदा भी हुआ और इस चुनाव में भी हो सकता है।
उत्तर प्रदेश (2022) और मध्य प्रदेश (2023) में हाल के राज्य विधानसभा चुनावों में, Axis-MyIndia द्वारा किए गए एग्जिट पोल से पता चला कि भाजपा को अपने विरोधियों की तुलना में महिलाओं से वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिला। भाजपा की तरफ झुकाव वाले परिवारों में 73% महिलाओं ने बताया कि वे भी भाजपा के साथ जुड़ी हुई थीं। हालांकि, कांग्रेस की तरफ झुकाव वाले परिवारों में केवल 68% महिलाओं ने पुरुषों की राजनीतिक प्राथमिकताओं से खुद को जोड़ा जबकि 25% ने खुद को प्रतिद्वंद्वी भाजपा के साथ जोड़ लिया। जिन घरों में किसी एक पार्टी को लेकर स्पष्ट प्राथमिकता नहीं थी, इन घरों में 48% महिलाएं भाजपा की तरफ गईं।
हालांकि, यह निष्कर्ष अस्थायी हैं लेकिन इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि महिलाओं की बढ़ती राजनीतिक दावेदारी हिंदी पट्टी में राजनीतिक दलों के लिए एक चुनौती बन गई है, खासकर उन दलों के लिए जो जाति के आधार पर संगठित हैं। जाति जहां भारतीय राजनीति की धुरी रही है, भाजपा पारंपरिक जातीय गोलबंदी का मुकाबला करने के लिए जेंडर-गैप का इस्तेमाल करने का प्रयास कर रही है। पिछले सभी चुनावों के आंकड़ों को देखें तो वोटर टर्नआउट में महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों के लगभग बराबर रही है।
राजस्थान के 1457 घरों में 2021 में हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक, जिन घरों में पुरुष भाजपा के समर्थक थे, उन घरों की लगभग 70% महिलाएं भी बीजेपी सपोर्टर थीं। वहीं, ऐसे घरों में 20% महिलाएं कांग्रेस और 10% के लगभग महिलाएं अन्य दलों की समर्थक थीं।
ऐसे ही उन घरों की बात की जाये जहां पुरुष कांग्रेस पार्टी के समर्थक थे तो उन घरों की 60% से अधिक महिलाएं भी कांग्रेस समर्थक थीं। हालांकि, ऐसे घरों में 20% से अधिक महिलाएं भाजपा और 10% के आसपास महिलाएं अन्य दलों की समर्थक थीं।
अगर ऐसे घरों की बात की जाये जहां पुरुष भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर किसी अन्य दल या फिर किसी दल के समर्थक नहीं थे, उन घरों की लगभग 50% महिलाएं बीजेपी और 40% से कुछ कम महिलाएं कांग्रेस की समर्थक थीं। ऐसे घरों में लगभग 15% महिलाएं अन्य दलों की समर्थक थीं।
आमतौर पर महिलाओं के मतदान प्रतिशत में बदलाव पुरुषों के उतार-चढ़ाव के बराबर ही होता है लेकिन 2009 में पुरुषों का मतदान प्रतिशत कम होने के बावजूद महिलाओं की भागीदारी बढ़ गई। तब से, महिलाओं ने भारी संख्या में मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग जारी रखा है। 2019 के आम चुनावों में यह अंतर गायब हो गया है। यह कहना भी गलत है कि महिलाएं पुरुषों की राय के अनुसार मतदान करती हैं। 2014 के आम चुनावों में केवल 61% महिलाओं ने कहा कि उन्होंने मतदान का निर्णय लेते समय अपने परिवार की सलाह का पालन किया।
बिहार में 2020 के राज्य विधानसभा चुनावों में, भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) द्वारा सुरक्षित की गई 125 सीटों (79%) में से 99 सीटें उन निर्वाचन क्षेत्रों में जीती गईं, जहां महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक था। उत्तर प्रदेश में भी महिलाओं के बीच भाजपा का सपोर्ट बढ़ा है जैसा कि उस राज्य के 2022 विधानसभा चुनावों में एक्सिस-मायइंडिया द्वारा किए गए एग्जिट पोल से पता चलता है।
जातिगत आधार पर वोटों की बात की जाये तो यादव और मुस्लिम सपा के वोटबैंक का आधार रहे हैं। भाजपा इनमें सेंधमारी करने में नाकाम रही है। वहीं, बसपा का आधार माने जाने वाले जाटव (एससी) वोट बैंक में भाजपा सेंधमारी करने में कामयाब हुई है उनमें भी भाजपा की तरफ झुकने वाली महिलाओं की संख्या ज्यादा है।
उल्लेखनीय बात यह है कि किसी एक पार्टी को वोट न देने वाले जाट, कुर्मी, गैर-यादव अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), और गैर-जाटव अनुसूचित जाति (एससी) जैसे छोटे (संख्या के लिहाज से) लेकिन चुनावी रूप से महत्वपूर्ण जाति समूहों की महिलाओं के बीच भाजपा को बढ़त हासिल है। उच्च जाति समूहों के बीच भाजपा को बढ़त जारी है। उच्च जातियां लंबे समय से भाजपा को समर्थन देती रही हैं। उच्च जातियों में भी बीजेपी को पुरुषों के मुकाबले महिलाओं से ज्यादा वोट मिला है।

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