मोदी सरकार आठ बार तो बदल चुकी है संविधान, फिर 'अबकी बार, 400 पार' के नारे से डर क्यों? – NBT नवभारत टाइम्स (Navbharat Times)

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2014 में जब बीजेपी को अकेले दम पर बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो उनकी सरकार ने सबसे पहला संविधान संशोधन उच्च अदालतों में न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया बदलने को लेकर किया। मोदी सरकार ने अपना पहला संविधान संशोधन किया था, वह संविधान का 99वां संविधान संशोधन था। संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) की संरचना एवं कामकाज का जिक्र है। अधिनियम में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ की ओर से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन के लिए एक पारदर्शी एवं व्यापक आधार वाली प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है। यह 13 अप्रैल, 2015 को नोटिफाइ किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी एक्ट को रद्द कर दिया।

भारत और बांग्लादेश के बीच हुई जमीनी सीमा संधि के लिए संविधान में 100वां संशोधन किया गया। 1 अगस्त, 2015 को लागू इस कानून का मकसद 41 सालों से पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ चल आ रहे सीमा विवाद को सुलझाना है। कानून बनने के बाद दोनों देशों ने आपसी सहमति से कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान भी किया। समझौते के तहत बांग्लादेश से भारत आए लोगों को भारतीय नागरिकता भी दी गई।

इस संशोधन अधिनियम का संबंध वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) से है। एक देश, एक टैक्स सिस्टम का यह कानून 1 जुलाई, 2017 को लागू हुआ था। 1 जुलाई, 2018 को जीएसटी का एक साल हुआ तो भारत सरकार ने इसे जीएसटी डे के रूप में मनाया। जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है जिसे पूरे देश को एक साझा बाजार समझकर लागू किया गया है। जीएसटी ऐक्ट लागू करने के लिए संविधान में 101वां संशोधन किया गया।

मोदी सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए 2018 में 102वां संविधान संशोधन संसद में पेश किया था। इस संशोधन के जरिए संविधान में तीन नए अनुच्छेद शामिल किए गए। नए अनुच्छेद 338बी के तहत राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। इसी तरह एक और नया अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची से संबंधित है। तीसरा नया अनुच्छेद 366(26सी) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है। इस संशोधन के माध्यम से पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला।

मोदी सरकार ने पहली बार सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी शिक्षा और नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण (ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन) की व्यवस्था की। सरकार ने इसके लिए वर्ष 2019 में संसद से 103वां संविधान संशोधन प्रस्ताव पारित करवाया। ईडब्ल्यूएस रिजर्वेशन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो अदालत ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देने के प्रावधान में कोई खामी नहीं है। यानी कथित अगड़ी जातियों में आर्थिक रूप से पिछड़ों के लिए आरक्षण के कानून को सुप्रीम कोर्ट से भी हरी झंडी मिल गई। यह आरक्षण सिर्फ जनरल कैटिगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है। इस आरक्षण से एससी, एसटी, ओबीसी को बाहर किया गया है।

मोदी सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 साल के लिए और बढ़ाने के लिए संविधान संशोध प्रस्ताव संसद में लाया। यह प्रस्ताव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन करने का था। दरअसल लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और एंग्लो-इंडियन समुदाय को पिछले 70 वर्ष से मिल रहा आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त हो रहा था। इस विधेयक में एससी-एसटी के संदर्भ में इसे 10 वर्ष बढ़ाने का प्रावधान किया गया। यह 104वां संविधान संशोधन के जरिए संभव हुआ।

केंद्र सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया। संसद के मानसून सत्र में 11 अगस्‍त, 2021 को 127वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया था। लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने कहा था कि फिर से संख्या अंकित करने के बाद यह विधेयक 105वां संविधान संशोधन विधेयक माना जाएगा। इस संविधान संशोधन के बाद राज्यों को अधिकार मिल गया कि वो ओबीसी लिस्ट में संशोधन कर सके।

मोदी सरकार ने लोकसभा, राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली की विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने के लिए कानून बनाने का ऐतिहासिक कदम उठाया। केंद्र सरकार ने सितंबर, 2023 में नारी शक्ति वंदन अधिनियम को संसद से मंजूरी दिलाई। इसके लिए संविधान (106वां संशोधन) अधिनियम, 2023 को संसद से पारित किया गया था।

मोदी सरकार में हुए इन आठ संविधान संशोधनों में कोई एक भी ऐसा नहीं जिसे लोकंत्र विरोधी या आरक्षण के खात्मे का प्रयास बताया जा सकता है। बल्कि मोदी सरकार ने एससी, एसटी, ओबीसी तो छोड़िए सामान्य वर्ग के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की। तो सवाल है कि आखिर विपक्ष को ऐसा क्यों लगता है कि 400 सीटें मिलने पर एनडीए सरकार संविधान बदल देगी? सवाल यह भी है कि सरकार ने जीएसटी एक्ट को आम सहमति से पास करवाया था तब तो उसके पास 400 सीटें नहीं थी। ऐसे में सवाल यह भी है कि अगर मोदी सरकार संविधान बदलना भी चाहे तो ऐसी क्या मजबूरी है कि 400 सीटें चाहिए ही चाहिए? आखिर इंदिरा गांधी की सरकार ने जब 42वें संशोधन के जरिए एक मिनी संविधान ही बना दिया था तब तो उसके पास 352 सांसद ही थे। उधर, 2019 में एनडीए के 353 सांसद जीते थे। जब इंदिरा गांधी ने 352 सांसदों के साथ ही संविधान बदल दिया तो 353 सीटों के साथ आई मोदी सरकार को भला संविधान बदलने से कौन रोक लेता?

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