लोकसभा चुनाव 2024 में बरेली पर सबकी नजर है। यहां हुए 17 चुनावों में से आठ तो एक ही नेता (संतोष गंगवार) ने जीते हैं। 1989 से 2004 तक लगातार। फिर 2014 और 2019 में। लेकिन, 2024 में संतोष गंगवार मैदान में ही नहीं हैं। भाजपा ने उनका टिकट काट कर छत्रपाल गंगवार को उम्मीदवार बनाया है। उसी छत्रपाल को जो 2022 में बहेरी विधानसभा सीट से चुनाव हार गए थे।
हर कोई अभी भी यही माथापच्ची कर रहा है कि आखिर भाजपा के इस फैसले के पीछे की वजह क्या रही होगी? इसके अलावा कुछ और पल्ले नहीं पड़ रहा कि वह आरएसएस के करीबी हैं और उन पर संघ का वरद्हस्त रहा है।
लेकिन, आठ बार के सांसद का टिकट काटने का कॉन्फिडेंस बीजेपी में ऐसे नहीं आया होगा। कुछ ऐसे संकेत भी हैं, जिनके आधार पर बीजेपी को उम्मीद होगी कि नया उम्मीदवार भी यहां पार्टी को जीत दिला सकता है। जैसे- बीजेपी को पिछले दो चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा मत मिलना और मोदी के नाम पर नए उम्मीदवार की जीत का विश्वास होना।
संतोष गंगवार की जगह छत्रपाल को टिकट देने का विरोध भी हुआ, लेकिन पार्टी पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हां, शुरू-शुरू में छत्रपाल पर जरूर असर हुआ। उनके प्रचार तक में कोई स्थानीय नेता नहीं जा रहा था। स्थिति यहां तक पहुंच गई थी कि छत्रपाल ने टिकट वापस करने तक की पेशकश कर दी थी।
दो बार (2007 और 2017) विधायक रहे छत्रपाल का बरेली में सपा के प्रवीण सिंह एरोन से मुकाबला है। 2009 में एरोन कांग्रेस के टिकट पर बरेली से सांसद रह चुके हैं। 2014 और 2019 में भी एरोन कांग्रेस के टिकट से बरेली से चुनाव लड़े थे। तब उन्हें क्रमश: 8.3 और 7 प्रतिशत वोट मिले थे।
इस बार एरोन सपा के टिकट पर बरेली के मैदान में हैं। सपा को बरेली में 2014 में 27.3 प्रतिशत और 2019 में 37.4 प्रतिशत वोट मिले थे। इस बार सपा-कांग्रेस साथ हैं। लेकिन, बीजेपी के गंगवार को पिछले दो चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे।
भले ही बरेली लोकसभा सीट पर 17 में आठ बार भाजपा और दो बार जनसंघ का कब्जा रहा हो, लेकिन नया उम्मीदवार देने के चलते यह बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए प्रतिष्ठा की सीट बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां रोड शो करके इस पर एक तरह से मुहर भी लगा दी।
बरेली में लगातार एक ही व्यक्ति के सांसद चुने जाने के दो ही उदाहरण हैं। 1952 और 1957 में कांग्रेस के सतीश चंद्र लगातार चुने गए थे। उसके बाद यह मौका संतोष गंगवार को ही मिला, जो 1989 से 2004 तक लगातार चुने गए। फिर 2014 और 2019 में भी।
बरेली में 2019 में करीब 18 लाख कुल वोटर्स थे। इनमें से करीब 59 फीसदी ने वोट डाला था। सर्वे एजेंसी चाणक्य के अनुसार यहां सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी (28.6 प्रतिशत) और दूसरे नंबर पर गंगवार की (22.5 प्रतिशत) है।