Jharkhand Lok Sabha Election 2024 Phase 6 Voting date: झारखंड के गिरिडीह के चुनावी रण में 3 दिग्गज कुर्मी नेता आपस में भिड़ रहे हैं. ये हैं मथुरा महतो, चंद्रप्रकाश चौधरी और जयराम महतो. मथुरा महतो और चंद्रप्रकाश चौधरी झारखंड की अलग-अलग सरकारों में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. गिरिडीह झारखंड की इकलौती ऐसी सीट है जहां किसी राष्ट्रीय पार्टी का उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं है. बल्कि दो क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा-JMM औरऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन- आजसू के बीच लड़ाई है. हालांकि आजसू को बीजेपी ने समर्थन दिया है. इसके साथ ही 14 और उम्मीदवार यहां से अपनी राजनीतिक किस्मत आजमा रहे हैं. इनमें से 7 निर्दलीय हैं. लेकिन सिर्फ 3 ही स्थानीय नेता हैं. जेएमएम उम्मीदवार मथुरा महतो धनबाद और आजसू उम्मीदवार चंद्रप्रकाश चौधरी रामगढ़ के रहने वाले हैं. इन दोनों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति के प्रमुख और निर्दलीय उम्मीदवार जयराम महतो.
कुर्मी बहुल गिरिडीह लोकसभा सीट पर अब तक कुर्मी वोटर ही जीत-हार तय करते रहे हैं. पर इस बार 3 कुर्मी नेताओं के मैदान में उतरने से किसी एक उम्मीदवार को अपनी जाति का एकमुश्त वोट मिल पाना मुश्किल लग रहा है. ऐसे में दूसरे जातीय समूहों की गोलबंदी और समर्थन के आधार पर बनने वाले समीकरणों के निर्णायक होने की उम्मीद जतायी जा रही है. ऐसे में ब्राह्मण और भूमिहार वोटर बड़ा फैक्टर साबित हो सकते हैं.
दिग्गजों की कर्मभूमि गिरिडीह
1952 से 2019 के बीच गिरिडीह में 17 बार चुनाव हो चुके हैं. इनमें 5 बार बीजेपी, 4 बार कांग्रेस, 3 बार जेएमएम और क्षेत्रीय दलों के सांसद चुने गए. बिहार का 17वां मुख्यमंत्री बनने से पहले दिग्गज कांग्रेस नेता बिंदेश्वरी दुबे 1980 में गिरिडीह से सांसद चुने गए थे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक रहे विनोद बिहारी महतो भी 1991 में गिरिडीह से सांसद चुने गए थे. उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे राजकिशोर महतो जेएमएम के टिकट पर सांसद बने. बोकारो जिला कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रवींद्र पांडेय ने कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर 1996 में पाला बदला था और बीजेपी के टिकट पर पहली बार सांसद चुने गए. इसके साथ ही 1989 के बाद जेएमएम के इस गढ़ में दूसरी बार बीजेपी का कमल खिला.
रवींद्र पांडेय 1996 के साथ-साथ 1998, 1999, 2009 और 2014 में भी सबसे ज्यादा 5 बार गिरिडीह से सांसद बने. पर 2019 में टिकट को लेकर उपजे विवाद के बीच बीजेपी ने सीट बंटवारे के तहत ये सीट आजसू को थमा दी थी. तब आजसू के टिकट पर चंद्रप्रकाश चौधरी 6,48,277 यानी 58.6 फीसदी बंपर वोट के साथ पहली बार सांसद चुने गए. दूसरे स्थान पर रहे जेएमएम उम्मीदवार जगरनाथ महतो 3,99,930 वोट (36 फीसदी) ही ला सके थे. उस समय आजसू और जेएमएम के बीच जीत का अंतर 22.5 फीसदी रहा.
गिरिडीह का सियासी गणित
गिरिडीह में गिरिडीह, धनबाद और बोकारो जिले की 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें से 3 पर जेएमएम और एक-एक पर कांग्रेस, बीजेपी तथा आजसू का कब्जा है. झारखंड की यही एकमात्र सीट है, जो बीजेपी ने वर्ष 2019 के बाद इस दफा भी आजसू के लिए छोड़ी. पर इससे पहले गिरिडीह से सबसे ज्यादा 5 बार चुनाव जीतनेवाले पूर्व बीजेपी सांसद रवींद्र पांडेय ने इस बार भी टिकट पाने के लिए खूब हाथ-पांव मारे थे. लेकिन सीट बंटवारे में बीजेपी ने फिर से गिरिडीह सीट आजसू को थमा दी. तो रवींद्र पांडेय ने टिकट की आस में कांग्रेस का दरवाजा खटखटाया. पर वहां भी दाल नहीं गली. आखिर में उन्होंने चुनाव से किनारा कर लिया.
गिरिडीह में सबसे ज्यादा 19 फीसदी कुर्मी, 17 फीसदी मुस्लिम, 15 फीसदी आदिवासी और 11 फीसदी एससी वोटर हैं. यहां 25 मई को छठे चरण में वोटिंग होगी. इस बार 18 लाख, 40 हजार, 296 वोटर 16 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे.
आजसू को मोदी मैजिक से आस
गिरिडीह लोकसभा सीट के मौजूदा आजसू सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी के पहले इस सीट से 3 कुर्मी नेता विनोद बिहारी महतो, राजकिशोर महतो और टेकलाल महतो जीत चुके हैं. पर इन तीनों में से कोई दूसरी बार लोकसभा नहीं पहुंच पाए. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि चंद्रप्रकाश चौधरी उस मिथक को तोड़ कर दूसरी बार यहां से संसद पहुंच पाते हैं या नहीं. उन्हें 2019 के चुनाव में बीजेपी का भरपूर समर्थन मिला था. पर 5 साल तक सांसद की उपेक्षा से नाराज बीजेपी नेता और कार्यकर्ताओं में इस बार वैसा उत्साह नहीं दिखा. हालांकि उन्होंने रूठे कार्यकर्ताओं को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ऐसे में इस बार उन्हें आजसू और बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ मोदी मैजिक से बड़ी उम्मीद है.
समधी की जीत दोहरा पाएंगे मथुरा महतो?
गिरिडीह में 1991 और 2004 में जेएमएम का झंडा लहराया था. 2004 में दिग्गज नेता टेकलाल महतो यहां से सांसद बने थे. उनके समधी मथुरा महतो पर इस बार गिरिडीह में जेएमएम का परचम लहराने का दारोमदार है. मथुरा महतो 3 बार टुंडी से विधायक और 2 बार राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं. उन्हें कुर्मी वोटर के साथ-साथ जेएमएम के पारंपरिक 3 लाख मुस्लिम और 1 लाख आदिवासी वोटर से समर्थन की आस है.
प्रभावी होंगे जयराम महतो?
गिरिडीह से तीसरे अहम उम्मीदवार जयराम महतो झारखंड की भाषा और स्थानीयता के मुद्दे पर संघर्ष करने वाले फायरब्रांड नेता के रूप में पहचान बना चुके हैं. युवा वर्ग के बीच ‘टाइगर’ के नाम से लोकप्रिय जयराम महतो ने क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों को लेकर झारखंडी भाषा ‘खतियान संघर्ष समिति’ बनाई. इसी संगठन के बैनर तले वो नियोजन और भाषा समेत कई मुद्दों को लेकर उत्तरी और दक्षिणी छोटानागपुर में आंदोलन चलाते रहे हैं. उनकी जनसभाओं में अक्सर युवा वर्ग की भीड़ देखी जाती रही है. ऐसे में इस चुनाव में उनकी सियासी हैसियत की परीक्षा होनेवाली है.
कैसे तय होगी हार-जीत?
गिरिडीह लोकसभा में 3 महतो उम्मीदवारों के आपस में भिड़ने से महतो वोट बैंक का बंटवारा तय माना जा रहा है. यानी हार-जीत का परिणाम अन्य जातियां के वोट पर निर्भर होने वाला है. जो उम्मीदवार दूसरी जातियों के जितने ज्यादा वोट अपनी ओर खींच पाएगा, जीत का ताज उसके सिर पर होगा. गिरिडीह में महतो और मुस्लिम के बाद ब्राह्मण और भूमिहार जाति की संख्या भी कम नहीं है. यानी गिरिडीह लोकसभा सीट में इस बार ब्राह्मण और भूमिहार जाति निर्णायक हो सकती है.
गिरिडीह और धनबाद लोकसभा की सीमा आपस में मिलती है. धनबाद जिले की 2 विधानसभा सीट टुंडी और बाघमारा गिरिडीह लोकसभा में पड़ती हैं. ऐसे में गिरिडीह की लड़ाई धनबाद लोकसभा को भी प्रभावित कर सकती है. यही वजह है कि गिरिडीह के जेएमएम उम्मीदवार मथुरा महतो ने धनबाद में कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह के लिए चुनाव प्रचार किया. तो बदले में धनबाद की कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह और उनके विधायक पति जयमंगल सिंह गिरिडीह में जेएमएम के लिए चुनाव प्रचार करते दिखे.
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